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Monday, September 27, 2021

खेल पद्धति और भाषा शिक्षण || Play Method and Language Teaching

खेल पद्धति और भाषा शिक्षण-(Play Method and Language Teaching)



आधुनिक समस्त शिक्षण पद्धतियों में खेल को शिक्षा का आधार माना गया है क्योंकि खेल के माध्यम से शिक्षा सहजभाव एवं प्रभावशाली तरीके से प्रदान की जा सकती है। खेल विधि में बालकों को न तो शिक्षक का भय होता है और न ही उन पर पुस्तकों का बोझ रहता है। बालक खेल एवं क्रियाशीलता के द्वारा प्रभावशाली ढंग से शिक्षा ग्रहण करते हैं। जो बालकों की भावनाओं प्रवृत्तियों एवं संवेगों के अनुकूल होती है इससे बालकों का मानसिक और शारीरिक दोनों ही प्रकार का विकास समुचित ढंग से होता है।
खेल विधि के द्वारा भाषा का शिक्षण उत्तम हो जायेगा। नाटक, शब्द प्रतियोगिताएँ, अन्त्याक्षरी, वर्तनी सम्बन्धी प्रतियोगिताएँ इत्यादि खेल पद्धति के अन्तर्गत आते हैं। इनके द्वारा बालकों को भाषा का ज्ञान ठोस रूप में प्रदान किया जा सकता है।


1. साहित्यिक क्रियाएँ-बाद विवाद प्रतियोगिताओं का आयोजन करना, कवि सम्मेलन, भाषण, प्रतियोगिताओं का आयोजन करना, विद्यालय की पत्रिका प्रकाशित करना आदि। 
2. पाठ्य सहगामी क्रियाएँ–स्काउटिंग गाइडिंग, छात्र स्वशासन, पर्यटन, एन. सी. सी. एन. एस. एस., विद्यालयी उत्सव, नाटक, संगठित खेल, कृत्रिम संसद का निर्माण, रचना सम्बन्धी प्रतियोगताएँ आदि।

3. विभिन्न प्रगतिशील शिक्षण पद्धतियों के खेल

4. कक्षा के भीतर खेले जाने वाले खेल–(फ्लैशकार्ड), अक्षर ज्ञान का खेल शुद्ध वाचन का खेल, व्याकरण शुद्ध करने की प्रतियोगिता, अक्षर रचना की प्रतियोगिता, पर्यायवाची शब्द, विपरीत शब्द निरर्थक-सार्थक शब्द, चित्रों के माध्यम से भावों का स्पष्टीकरण, कक्षा को दो भागों में विभक्त करके तुलनात्मक साहित्यिक कार्यक्रम इत्यादि का आयोजन।

खेल विधि सभी स्तर के बालकों को भाषा शिक्षण के शिक्षण के लिए उत्तम एवं उपयोगों है। मौखिक भाषा अधिगम हेतु खेल विधि सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। खेल के द्वारा अभिव्यक्ति होती है जो वाद विवाद आदि विधियों में सहायक होती है। लेकिन यह बात सदैव ध्यान रखने योग्य है कि यह विधि शिक्षा के ऊपर अपना आधिपत्य स्थापित कर अधिनायक का स्वरूप न धारण कर लें अन्यथा खेल प्रधान हो जायेगा और शिक्षा गौण।


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