राष्ट्रीय ज्ञान आयोग (N.K.C. 2005)
20वीं शताब्दी में संसार में ज्ञान के क्षेत्र में भारी विस्फोट हुआ। हमारे देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने देश को आगे बढ़ाने के लिए इस ज्ञान की आवश्यकता का अनुभव किया। अब प्रश्न था - देशवासियों को यह ज्ञान किस रूप में और कैसे कराया जाए और भारतीय समाज को ज्ञानवान समाज कैसे बनाया जाये। इस समस्या के समाधान हेतु उन्होंने 13 जून 2005 को श्री सैम पित्रोदा (Sri Sem Pitroda) की अध्यक्षता में इस आयोग का गठन किया। इस आयोग में अध्यक्ष पित्रोदा के अतिरिक्त देश के जाने माने 7 विशेषज्ञ सदस्य और थे। इस आयोग ने अपना कार्य 2006 में शुरू किया।
आयोग के विचारणीय विषय एवं कार्य क्षेत्र :
- 21वीं शताब्दी की ज्ञान चुनौतियों का सामना करने के लिए शैक्षिक प्रणाली में उत्कृष्टता का निर्माण करना और ज्ञान के क्षेत्रों में भारत के प्रतिस्पर्धात्मक लाभ को बढ़ाना।
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी प्रयोगशालाओं में ज्ञान के सूजन को बढ़ावा देना।
- बौद्धिक सम्पदा अधिकारों के क्षेत्र में कार्यरत संस्थाओं के प्रबन्ध में सुधार लाना।
- कृषि और उद्योगों में ज्ञान के प्रयोगों बढ़ावा देना।
- नागरिकों को एक प्रभावी, पारदर्शी और जवाबदेह सेवा प्रदाता के रूप में सरकार के भीतर ज्ञान क्षमताओं के प्रयोगों को बढ़ावा देना और सार्वजनिक लाभ को अधिकतम करने के उद्देश्य से ज्ञान के व्यापक आदान-प्रदान को प्रोत्साहित करना।
आयोग का प्रतिवेदन
इस आयोग का प्रतिवेदन 5 भागों में विभाजित है|
- ज्ञान की सुलभता (Access to Knowledge)
- ज्ञान के सिद्धान्त (Knowledge Concepts )
- सृजन (Creation)
- अनुप्रयोग (Applications)
- सेवाएँ (Services)
राष्ट्रीय ज्ञान आयोग के स्कूली शिक्षा सम्बन्धी मुख्य सुझाव
राष्ट्रीय ज्ञान आयोग के स्कूली शिक्षा सम्बन्धी मुख्य सुझावों को निम्नलिखित रूप में क्रमबद्ध किया जा सकता है
शिक्षा प्रशासन एवं वित्त सम्बन्धी सुझाव
- विद्यालय स्तर पर शिक्षा के प्रशासन का विकेन्द्रीकरण किया जाना चाहिए।
- स्कूलों की गुणवत्ता मोनिटर करने के लिए राष्ट्रीय मूल्यांकन निकाय स्थापित किया जाना चाहिए।
- स्कूली शिक्षा हेतु राज्यों को केन्द्रीय सरकार के द्वारा दी जाने वाली धन राशियों के नियम अधिक लचीले बनाए जाने चाहिए।
- स्कूली शिक्षा हेतु राज्यों को केन्द्रीय सरकार के द्वारा दी जाने वाली धन राशियों के नियम अधिक लचीले बनाए जाने चाहिए।
- निजी स्कूलों को दी जाने वाली सहायता के नियम अधिक लचीले बनाए जाने चाहिए तथा प्रबन्ध तंत्र को धनराशि के प्रयोग की स्वायत्तता होनी चाहिए।
- गुणवत्ता बनाए रखते हुए स्कूल समय, छुट्टियों तथा अध्यापक भर्ती के सम्बन्ध में नमनशीलता होनी चाहिए।
- शिक्षा में सरकारी खर्च बढ़ाना चाहिए तथा वित्तीय स्रोतों में विविधता लानी चाहिए।
- आयोग स्कूली शिक्षा को दो वर्गों में देखता है प्रारम्भिक और माध्यमिक
- स्कूली शिक्षा के प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर कौशल सिखाने का पाठ्यक्रम सम्मिलित किया जाना चाहिए।
- आयोग के अनुसार विभिन्न शिक्षण तथा अनुसंधान संस्थाओं के साथ विशेषज्ञों एवं सरकारी अधिकारियों के मध्य विचार विमर्श हेतु राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क की स्थापना की जानी चाहिए।
स्कूली शिक्षा सम्बन्धी सुझाव
- सभी को कक्षा से एक भाषा के रूप में अंग्रेजी पढ़ाई जानी चाहिए।
- तीसरी कक्षा से कोई एक विषय अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाया जाना चाहिए।
- स्कूलों के सामाजिक ऑडिटों को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए।
- स्कूली शिक्षकों से चुनाव एवं आपदा प्रबन्धन के अतिरिक्त अन्य गैर शैक्षणिक कार्य नहीं लेने चाहिए।
- स्कूल अध्यापकों को कम से कम 5 वर्षों की न्यूनतम नियत अवधि के लिए एक विशेष स्थान पर नियुक्त किया जाना चाहिए।
- अध्यापकों के स्व-मूल्यांकन और हमजोली मूल्यांकन की प्रणालियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
अध्यापक शिक्षा सम्बन्धी सुझाव
- सरकारी और निजी, दोनों संस्थानों में सेवा पूर्व प्रशिक्षण में सुधार लाना चाहिए। और उसे अलग ढंग से विनियमित करना चाहिए।
- सेवाकालीन प्रशिक्षणों में सुधार के साथ-साथ उनका विस्तार करना चाहिए तथा उनमें नमनशीलता लानी चाहिए।
- अध्यापकों को विचारों, जानकारी और अनुभवों का आदान-प्रदान करने हेतु वेब आधारित पोर्टल जैसे मंच विकसित किये जाने चाहिए।
- सेवा पूर्व तथा सेवाकालीन, दोनों तरह के अध्यापक प्रशिक्षण के पाठ्यक्रमों में सुधार लाना चाहिए।
- प्राइवेट शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों का समुचित मानीटरन किया जाना चाहिए।
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