इस सीरीज को देखने के लिए यहाँ क्लिक करें 👇

      

 Latest Podcast Discussion

Click to this Banner for Listen


 

Language

Monday, June 28, 2021

पाठ्यक्रम एवं पाठ्यवस्तु में अन्तर (Difference between Curriculum and Syllabus)



पाठ्यक्रम एवं पाठ्यवस्तु में अन्तर(Difference between Curriculum and Syllabus)


पाठ्यक्रम एवं पाठ्यवस्तु दो शब्दों का साधारणत: एक ही अर्थ में उपयोग किया है परन्तु शिक्षणशास्त्र के अन्तर्गत दोनों में अन्तर माना गया है। पाठ्यक्रम के अन्दर पाठ्यवस्तु को सम्मिलित किया जाता है। शिक्षणशास्त्र के अन्तर्गत कक्षा शिक्षण में प्रस्तुतीकरण तथा प्रदर्शन किया जाता है। प्रस्तुतीकरण तथा प्रदर्शन के प्रारूप का निर्धारण पाठ्यवस्तु की प्रकृति के आधार पर होता है।

पाठ्यक्रम तथा पाठ्यवस्तु मे अन्तर (Difference between Curriculum and Syllabus)

Curriculum

Syllabus

1

पाठ्यक्रम शिक्षा का व्यापक प्रत्यय है। पाठ्यक्रम का विकास सतत् प्रक्रिया है।

1

 पाठ्यवस्तु संकुचित शिक्षण की रूप रेखा है। परन्तु पाठ्यक्रम का विशिष्ट रूप हैं।  

2  

 पाठ्यक्रम का विकास सामाजिक आवश्यकता, मानवीय गुणों तथा सामाजिक दर्शन पर आधारित होता है तथा इसमें राष्ट्रीय विकास को भी महत्व दिया जाता है।

 2 

 पाठ्यवस्तु का प्रारूप छात्रों के स्तर रुचियों और विकासक्रम पर आधारित होता है। पाठ्यवस्तु को चढ़ावक्रम तथा पूर्व ज्ञान को महत्व दिया जाता है।

 3 

 पाठ्यक्रम की प्रकृति सैद्धान्तिक अधिक तथा व्यवहारिकता कम होती है। इसका तार्किक आकलन किया जाता हैं। 

 3 

 पाठ्यवस्तु स पाठ्यक्रम व्यवहारिक तथा उपयोगी बनाया जाता है। परीक्षा प्रश्न पत्र बनाने का आधार विषयवस्तु होती है।

 4 

 पाठ्यक्रम के विकास में शिक्षा के सामान्य उद्देश्यों तथा लक्ष्यों को महत्व दिया जाता है। इनकी प्राप्ति की अवधि सम्पूर्ण सत्र होती है तथा शिक्षण प्रक्रिया भी पूर्ण सत्र की है।

 4 

 पाठ्यवस्तु के शिक्षण, उद्देश्य विशिष्ट तथा व्यवहारिक होते हैं। इनकी शिक्षण कालांश में प्राप्ति कर ली जाती है।

 5 

 पाठ्यक्रम में विद्यालय प्रबन्धन की प्रणाली पर विचार करके व्यवस्था की जाती है। विद्यालय परिसर पाठ्यक्रमों के अनुरूप होते हैं।

 5 

 पाठ्यवस्तु के विशिष्ट प्रकरण से कक्षा शिक्षण विधियों, प्रविधियों तथा सूत्रों का निर्धारण करके क्रियान्वयन, प्रस्तुतीकरण तथा प्रदर्शन किया जाता है।

 6 

 पाठ्यक्रम में छात्रों के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा भावात्मक गुणों के विकास को महत्व दिया जाता है।

 6 

 पाठ्यवस्तु में प्रकरण सम्बन्धी ज्ञान, कौशल एवं रूचियों को महत्व दिया जाता है। यह पाठ्यक्रम विकास में सहायक होते हैं।

 7 

 पाठ्यक्रम विकास का सम्बन्ध शिक्षा के विकास तथा शिक्षाशास्त्र से अधिक सम्बन्धित होता है।

 7 

 पाठ्यवस्तु का निर्धारण तथा क्रियान्वयन शिक्षाशास्त्र से अधिक सम्बन्धित होता है, परन्तु पाठ्यक्रम का व्यवहारिक रूप ही है।

8  

 पाठ्यक्रम के चार तत्व-शिक्षा के उद्देश्य, शिक्षण आयाम, विधियाँ, परीक्षण की प्रणाली तथा पृष्ठपोषण होते हैं। इसमें प्रबन्धक, प्रशासक, प्राचार्य, शिक्षकों तथा छात्रों आदि सभी का योगदान होता है।

 8 

 पाठ्यवस्तु के प्रकरणों के अनुसार विशिष्ट ज्ञानात्मक, क्रियात्मक तथा भावात्मक शिक्षणध विधियाँ, प्रविधियाँ, सूत्र, मौखिक, प्रयोगात्मक व लिखित परीक्षणों तथा उपचारात्मक प्रविधियाँ को सम्मिलित किया जाता है।

 9 

 पाठ्यक्रम के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु कक्षागत क्रियाओं तथा कक्षा से बाहर की क्रियाओं का मूल्यांकन तथा आकलन किया जाता है। नैतिक गुणों के विकास को महत्व दिया जाता है। इसमें पाठ्यक्रम की उपयोगिता व सार्थकता का आकलन तार्किक ढंग से किया जाता है।

 9 

 पाठ्यवस्तु के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए कक्षागत क्रियाओं को ही महत्व दिया जाता है। निबन्धात्मक, वस्तुनिष्ठ, मौखिक तथा प्रयोगात्मक परीक्षाओं को प्रयुक्त किया जाता है। निदानात्मक परीक्षाओं तथा उपचारी व्यक्तिगत शिक्षण का भी उपयोग किया जाता है।

 10

 पाठ्यक्रम के विकास की प्रक्रिया समाज के भावी नागरिक तैयार करने के लिए की जाती है। सामाजिक परिवर्तन के अनुरूप पाठ्यक्रम का विकास भी सतत् होता रहता है।

 10

 पाठ्यवस्तु की रूपरेखा पाठ्यक्रम के अनुरूप तैयार की जाती है। परन्तु पाठ्यवस्तु के क्रियान्वयन से तात्कालिक गुणों का विकास होता है। परन्तु इनका सम्बन्ध छात्र के भावी जीवन के विकास से होता है।

11

 पाठ्यक्रम के विकास को शिक्षा व्यवस्था, परीक्षा प्रणाली, सामाजिक परिवर्तन, शासन प्रणाली, अध्ययन समितियाँ (Board of Studies) प्रभावित करती है।

 11

 पाठ्यवस्तु का विषय विशेषज्ञ, अध्ययन समिति, विद्यालय प्रबन्धन, शिक्षकों की योग्यता तथा छात्रों की आवश्यकता तथा उपयोगिता प्रभावित करती है। 

 12

पाठ्यक्रम की प्रकृति शिक्षक केन्द्रित छात्र केन्द्रित, अनुभव केन्द्रित, कार्य-केन्द्रित तथा मूल केन्द्रित आदि होती है।

 12

 पाठ्यवस्तु की प्रकृति का निर्धारण पाठ्यक्रम करता है। पाठ्यक्रम की प्रकृति इसे भी प्रभावित करती है उसी के अनुरूप शिक्षण उद्देश्यों, शिक्षण विधियों, प्रविधियों तथा सूत्रों का उपयोग किया जाता है।

No comments:

Post a Comment

"Attention viewers: Kindly note that any comments made here are subject to community guidelines and moderation. Let's keep the conversation respectful and constructive. Do not add any link in comments. We are also Reviewing all comments for Publishing. Thank you for your cooperation!"

POPULAR TOPIC

LATEST VIDEO