*बुनियादी शिक्षा पद्धति तथा भाषा शिक्षण- (Basic education system and language teaching)
बुनियादी शिक्षा समवाय के सिद्धान को मानती है तथा इसमें विषयों को सहसम्बन्धित करके पढ़ाए जाते हैं। हिन्दी भाषा को इस विधि में प्रमुखता का दर्जा मिला है। हिन्दी भाषा को निम्न विषयों से सह सम्बन्धित करके शिक्षा दी जाती है
* हिन्दी भाषा तथा अन्य विषयों के मध्य सह सम्बन्ध
* हिन्दी भाषा तथा अन्य विषयों के मध्य सह सम्बन्ध
* हिन्दी भाषा तथा अन्य भाषा के मध्य सह सम्बन्ध
* हिन्दी भाषा तथा अन्य विषयों के मध्य सह सम्बन्ध
* हिन्दी भाषा तथा अन्य जीवन के मध्य सह सम्बन्ध
बुनियादी शिक्षा में भाषा के तीन माध्यम हैं
* हस्तशिल्प उद्योग के द्वारा भाषा शिक्षण
बुनियादी शिक्षा में भाषा की शिक्षा भी पाठ्य पुस्तकों के बजाय हस्तकला के माध्यम से ही दी जाती है। क्रिया के साथ क्रिया सम्बन्धी लिखित कार्य कराया जाता है, जैसे-प्रतिदिन के कार्यों की रिपोर्ट तैयार करना, कच्चे माल हेतु, पत्राचार, सूत कातते समय गीत गाना आदि भाषा शिक्षण के प्रकार हैं। इसके द्वारा बालक की रचनात्मक (क्रियात्मक) एवं कल्पनात्मक शक्ति का विकास होता है। इस क्रिया के माध्यम से लेखन, वाचन, मौखिक तीनों ही प्रकार के कार्यों का सम्पादन होता है।
सामाजिक वातावरण के अन्तर्गत पर्व-त्यौहार मनाना, महापुरुषों की जन्मतिथि मनाना, साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय पर्वो के मानने से भाषा शिक्षण को पर्याप्त सहायता मिलती है। प्राकृतिक वातावरण से प्रकृति के नैसर्गिक सौन्दर्य बोध, दैवीय क्षमता आदि की शक्तियों की जानकारी प्राप्त होती है। इससे निरीक्षण, तर्क शक्ति, विचार शक्ति का विकास होता भाषा शिक्षण हेतु बुनियादी शिक्षण पद्धति व्यावहारिक भी है और मनोवैज्ञानिक भी परन्तु कही-कही अव्यवस्था सी आ जाती है जिसका समाधान आवश्यक है।
* सामाजिक वातावरण के द्वारा भाषा शिक्षण
* प्राकृतिक वातावरण के द्वारा भाषा शिक्षण।
भाषा के विकास में सामाजिक सम्बन्ध विशेष स्थान रखते हैं। बालक सामाजिक वातावरण एवं सामाजिक सम्बन्धों के माध्यम से भाषा का उत्तम ज्ञान अर्जित करता है।
बुनियादी शिक्षा में बालक क्रिया के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करता है वह निष्क्रय श्रोता बनकर कार्य नहीं करता है। वह क्रिया के द्वारा शिक्षा और व्यावहारिकता का प्रशिक्षण प्राप्त करता है। वार्तालाप के माध्यम से बालक की अभिव्यंजनात्मक शक्ति और मौखिक भाषा के रूपको निखरने का अवसर मिलता है। हस्तकला की शिक्षा में वार्तालाप की पूरी पूरी सम्भावना निहित है।
* प्राकृतिक वातावरण के द्वारा भाषा शिक्षण।
भाषा के विकास में सामाजिक सम्बन्ध विशेष स्थान रखते हैं। बालक सामाजिक वातावरण एवं सामाजिक सम्बन्धों के माध्यम से भाषा का उत्तम ज्ञान अर्जित करता है।
बुनियादी शिक्षा में बालक क्रिया के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करता है वह निष्क्रय श्रोता बनकर कार्य नहीं करता है। वह क्रिया के द्वारा शिक्षा और व्यावहारिकता का प्रशिक्षण प्राप्त करता है। वार्तालाप के माध्यम से बालक की अभिव्यंजनात्मक शक्ति और मौखिक भाषा के रूपको निखरने का अवसर मिलता है। हस्तकला की शिक्षा में वार्तालाप की पूरी पूरी सम्भावना निहित है।
बुनियादी शिक्षा में भाषा की शिक्षा भी पाठ्य पुस्तकों के बजाय हस्तकला के माध्यम से ही दी जाती है। क्रिया के साथ क्रिया सम्बन्धी लिखित कार्य कराया जाता है, जैसे-प्रतिदिन के कार्यों की रिपोर्ट तैयार करना, कच्चे माल हेतु, पत्राचार, सूत कातते समय गीत गाना आदि भाषा शिक्षण के प्रकार हैं। इसके द्वारा बालक की रचनात्मक (क्रियात्मक) एवं कल्पनात्मक शक्ति का विकास होता है। इस क्रिया के माध्यम से लेखन, वाचन, मौखिक तीनों ही प्रकार के कार्यों का सम्पादन होता है।
सामाजिक वातावरण के अन्तर्गत पर्व-त्यौहार मनाना, महापुरुषों की जन्मतिथि मनाना, साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय पर्वो के मानने से भाषा शिक्षण को पर्याप्त सहायता मिलती है। प्राकृतिक वातावरण से प्रकृति के नैसर्गिक सौन्दर्य बोध, दैवीय क्षमता आदि की शक्तियों की जानकारी प्राप्त होती है। इससे निरीक्षण, तर्क शक्ति, विचार शक्ति का विकास होता भाषा शिक्षण हेतु बुनियादी शिक्षण पद्धति व्यावहारिक भी है और मनोवैज्ञानिक भी परन्तु कही-कही अव्यवस्था सी आ जाती है जिसका समाधान आवश्यक है।
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