ज्ञान मीमांसा (Epistemology)
ज्ञान की असीम पिपासा दर्शन का प्रस्थान बिन्दु है इसलिए दर्शन के अंतर्गत एक शाखा के रूप में ज्ञानशास्त्र स्वीकृत है। वास्तव में ज्ञान की दिशा मुक्तिदायक होती है अतः ज्ञान को सदगुण कहा गया ( Knowledge is Virtue) | ज्ञान को सच्चा मित्र बताया गया है जो व्यक्ति के नेत्र पर अज्ञानता के पर्दे को हटाता है। ज्ञान का क्षेत्र अत्यंत व्यापक है तथा इसकी व्यापकता की गहरई के आधार पर व्यक्ति अपनी दृष्टि बनाता है। ज्ञान मीमांसा ज्ञाता के ज्ञेय से सम्बन्ध, ज्ञान की अन्तःवस्तु का स्वरूप, ज्ञान वस्तु का यथार्थ, ज्ञान की सीमाए, ज्ञान के स्रोत, ज्ञान का विज्ञान से सम्बन्ध आदि समस्याओं की विवेचना करता है | ज्ञान मीमांसा में आगमन व निगमन, संश्लेषण व विश्लेषण विधियों का प्रयोग किया जाता है। ज्ञान मीमांसा के प्रमुख सिद्धांत है
1. अनुभववाद:(Empiricism)
1. अनुभववाद:(Empiricism)
अनुभव को समस्त ज्ञान का स्त्रोत माना जाता है। इसके अनुसार मनुष्य को ज्ञान उसकी विभिन्न इन्द्रियों के माध्यम से प्राप्त संवेदनाओं के द्वारा होता है। अनुभववाद के जनक ब्रिटिश दार्शनिक जॉन लॉक के मतानुसार जन्म के समय बालक का मन एक कोरी पट्टी के समान होता है। जैसे-जैसे वह बाह्य जगत के संपर्क में आता, संवेदनाओं के रूप में वस्तुओं के चिन्ह मस्तिष्क के इस खाली पट्टी पर अंकित होते जाते है।
Experience is considered the source of all knowledge. According to this, knowledge comes to man through the sensations received through his various senses. According to the British philosopher John Locke, the father of empiricism, the child's mind at birth is like a blank band. As he comes in contact with the external world, signs of things in the form of sensations are imprinted on this empty strip of the brain.
2. बुद्धिवाद:(Rationalism)
2. बुद्धिवाद:(Rationalism)
बुद्धिवाद से तात्पर्य ज्ञान के क्षेत्र में उस सिद्धांत से है जो समस्त ज्ञान को बुद्धि पर आधारित मनाता है। इसका प्रारंभ देकार्त से माना जाता है इसमें सत्य का अन्वेषण आवश्यक है और हम बिना प्रमाण के किसी तथ्य को स्वीकार नहीं कर सकते।
Rationalism refers to that theory in the field of knowledge which celebrates all knowledge based on intelligence. Its origin is believed to be from Descartes, it is necessary to investigate the truth and we cannot accept any fact without proof.
3. संशयवाद: (Skepticism)
3. संशयवाद: (Skepticism)
संशयवादपूर्ण स्वीकार और पूर्ण नकार के मध्य से स्थित है। हम अपने तत्काल ज्ञान के बाहर किसी वस्तु के अस्तित्व के विषय में निश्चयपूर्ण नहीं कह सकते क्योंकि उसे सिद्ध करने के लिए हमारे पास कोई प्रमाण नहीं है ।
Situated between skeptical acceptance and complete denial. We cannot say with certainty about the existence of something outside our immediate knowledge because we have no evidence to prove it.
4. प्रत्ययवाद:(Suffragism)
इनके अनुसार संसार की प्रत्येक भौतिक वस्तु क्षणिक तथा परिवर्तनशील है। ब्रह्माण्ड की प्रत्येक घटना एवं तत्व अपने अस्तित्व के लिए मनस् पर आश्रित तथा आधारित है।
According to suffragism, every material thing in the world is transient and changeable. Every phenomenon and element in the universe is dependent and dependent on the mind for its existence.
5. यथार्थवाद: (Realism)
According to suffragism, every material thing in the world is transient and changeable. Every phenomenon and element in the universe is dependent and dependent on the mind for its existence.
5. यथार्थवाद: (Realism)
इस शाखा के अंतर्गत भौतिक सत्ता के संदर्भ में चिन्तन-मनन किया जाता है और पदार्थ जगत को प्राथमिकता सी जाती है।
Under this branch, contemplation is done in the context of material existence and priority is given to the material world.
बटलर के अनुसार यथार्थवाद संसार को सामान्यत: उसी रूप में स्वीकार करता है जिस रूप में वह हमें दिखाई देता है।
According to Butler, realism accepts the world in general as it appears to us.
6. व्यवहारवाद:(Behaviorism )
इस विचारधारा का मूल है कोई भी पूर्ण सिद्ध सत्य स्वीकार करने योग्य नहीं है। समस्त सत्ता परिवर्तनशील है, जो आज अभि सत्य है वही सत्य है। व्यवहारवाद ने आधुनिक दर्शन को सबसे अधिक प्रभावित किया है।
The core of this ideology is that there is no absolute perfect truth capable of being accepted. All existence is changeable, what is true today is the truth. Behaviorism has influenced modern philosophy the most.
अत: उपरोक्त विवेचन के आधार पर यह कहा जा सकता है की तत्व मीमांसा और ज्ञान मीमांसा में विषय की गहराई है। दर्शन ऐसी कला है जिसके अंतर्गत प्रकृति, व्यक्ति तथा जीवन और उसके उद्देश्यों एवं अन्य वस्तुओं पर तर्कपूर्ण विधिवत् विचार किया जाता है।
Therefore, on the basis of the above discussion, it can be said that there is a depth of the subject in the philosophy of philosophy and epistemology. Philosophy is an art under which nature, man and life and its purposes and other things are considered logically and systematically.
No comments:
Post a Comment
"Attention viewers: Kindly note that any comments made here are subject to community guidelines and moderation. Let's keep the conversation respectful and constructive. Do not add any link in comments. We are also Reviewing all comments for Publishing. Thank you for your cooperation!"