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Wednesday, June 16, 2021

विषय अथवा अनुशासन की प्रकृति एवं संरचना (Throw light on Nature and Structure of Subject Matter Disciplines)

विषय अथवा अनुशासन की प्रकृति एवं संरचना पर प्रकाश डालें। (Throw light on Nature and Structure of Subject Matter Disciplines.)

विषय अथवा 'अनुशासन' की प्रकृति एवं उसकी संरचना के बारे में स्पष्टता होने पर अन्तर्वस्तु के चयन में सरलता होती है। यदि किसी विषय की प्रकृति वैज्ञानिक है तथा उसके अन्तर्गत पदार्थों के बारे में अध्ययन किया जाता है तो निस्सन्देह विषय पदार्थ विज्ञान होगा। अतः स्वाभाविक है कि कोई भी पाठ्यक्रम निर्माता पदार्थ विज्ञान के लिए उससे सम्बन्धित क्षेत्रों से ही अन्तर्वस्तु को प्राप्त करने का प्रयास करेगा। इसके लिए वह साहित्य के ज्ञान के भण्डार का अवलोकन कदापि नहीं करेगा।


चूँकि प्रत्येक अनुशासन की अपनी एक विशिष्ट प्रकृति होती है तथा उसकी संरचना कुछ निश्चित बिन्दुओं को लेकर की गई होती है। अतः प्रत्येक विषय का अपना विस्तार एवं सीमा क्षेत्र होता है। विषय विशेष के ज्ञान में वृद्धि होने तथा उसकी पूर्व संरचना में न समा पाने के परिणामस्वरूप उसमें से नये विषय का उदय होता है| अतः अन्तर्वस्तु के चयन में विषय की प्रकृति एवं संरचना भी एक प्रमुख स्रोत होती है।


अन्तर्वस्तु चयन के मूल आधार :-

 शैक्षिक उद्देश्य (Educational Objectives as Bases of Selection of Content)-
ज्ञान की यह विशालता और मानव मस्तिष्क की सीमित क्षमता के कारण ही किसी पाठ्यक्रम के लिए अन्तर्वस्तु का चयन आवश्यक होता है। पाठ्यक्रम निर्माताओं के लिए यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है कि किसी पाठ्यक्रम के लिए अन्तर्वस्तु का चयन कैसे किया जाए? दूसरे शब्दों में इस चयन का मूल आधार क्या हो ?

चयन की अन्य सामान्य स्थितियों की तरह की पाठ्यक्रम के लिए अन्तर्वस्तु के चयन में भी प्रायः उपयोगिता एवं सार्थकता को आधार बनाने का प्रयास किया जाता है। ऐतिहासिक दृष्टि से भी यही पता चलता है कि आदिकाल से ही अन्तर्वस्तु का निर्धारण शैक्षिक उद्देश्यों के आधार पर ही किया जाता रहा है, किन्तु इस सम्बन्ध में विशेष जागरूकता एवं निरन्तरता बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में आई है तथा इस दिशा में विधिवत् प्रयास अपेक्षाकृत आधुनिक प्रवृति है।

संयुक्त राज्य अमेरिका की प्रमुख शैक्षिक संस्था 'नेशनल एजूकेशन एसोसियेशन (NE.A.) की पाठ्यक्रम सुधार परिषद ने अपने प्रतिवेदन में स्पष्ट लिखा है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल पाठ्यक्रम के अन्तर्वस्तु का नहीं, बल्कि शिक्षण विधियों, विद्यालयों के स्वरूप तथा शिक्षा की मात्रा का भी निर्धारण करता है। अमेरिका में वर्तमान शताब्दी के प्रारम्भ में अनेक समितियों ने इस दिशा में कार्य किया तथा अपनी संस्तुतियाँ प्रस्तुत कीं। इन संस्तुतियों का बहुत से विद्यालयों के कार्यक्रमों पर व्यापक प्रभाव पड़ा जो वास्तविक और प्राथमिक विद्यालयों के कुछ पक्षों पर अब भी परिलक्षित होते हैं। ये संस्तुतियाँ प्रमुख रूप से अन्तर्वस्तु के कक्षावार वितरण से ही सम्बन्धित थीं।


चूँकि वर्तमान शताब्दी के उत्तरार्द्ध का समाज यह अनुभव करता है कि प्रभावी रूप से कार्य करने के लिए उसके नागरिकों को ऐसी शिक्षा मिलनी चाहिए जो ज्ञान, कौशल, सृजनात्मक तथा नैतिक गुणों का अधिक से अधिक विकास कर सके। अतः पाठ्यक्रम को शैक्षिक विषयों के अनुरूप समायोजित करने के स्थान पर विद्यार्थियों किया आवश्यकता के अनुसार समायोजित किया जाना चाहिए।


अन्तर्वस्तु के चयन की समस्याएँ (Problems of Selection of Content)-


शैक्षिक उद्देश्यों का निर्धारण कर लेने तथा ज्ञान के विशाल भण्डार की अन्तर्वस्तु के स्रोत के रूप में उपलब्धता होने पर, जब हम अन्तर्वस्तु के चयन की आवश्यकता का अनुभव करते हैं। तो कई तरह की समस्याएँ भी हमारे सम्मुख उपस्थित हो जाती हैं। जब इस बात पर विचार किया जाता है कि पाठ्यक्रम में क्या-क्या सम्मिलित किया जाए तथा उनका आधार क्या हो, तो इस समय जो प्रमुख प्रश्न उभर कर आते हैं, वे इस प्रकार के होते हैं-


1. क्या किसी ज्ञान के चयन का आधार प्रमुख रूप से उसकी सांस्कृतिक उपयोगिता होनी चाहिए?

2. क्या किन्हीं तत्वों का कालजयी होना ही उन्हें पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने के लिए पर्याप्त है?

3. क्या किसी सामग्री को केवल इसलिए प्राथमिकता प्रदान की जाए क्योंकि वह विद्यार्थियों की रुचियों के अनुकूल है?

4. क्या वर्तमान समाज की समस्याओं से सम्बन्धित अन्तर्वस्तु को ही चुना जाये? 5. क्या उन तत्वों को वरीयता दी जाये जो परम्परित ज्ञान के रूप में विद्यार्थियों को व्यवस्थित क्षेत्रों से परिचित कराते हैं?

6. सन्तुलन कसे स्थापित किया जाये अर्थात् किस पक्ष को कितना महत्व दिया जाये? परम्परागत समाजों में तो इन प्रश्नों के सर्वसम्मत अथवा अधिकतम सहमत वाले उत्तर मिल सकते हैं, किन्तु परिवर्तनशील तथा तीव्र गतिमान वर्तमान समाजों में इन प्रश्नों के भिन्न-भिन्न उत्तर होगे। 


    क्योंकि वर्तमान समाजों में शिक्षा दर्शन से लेकर अधिगम-सिद्धान्तों तक में भिन्नताएँ तो होती ही हैं साथ ही अन्तर्विरोध भी पाये जाते हैं। विभिन्न समाजों में तथा कहाँ-कहीं एक ही समाज में ही अन्तर्वस्तु के चयन एवं उनके संगठन को लेकर अलग-अलग उपागम अपनाये जाते हैं। अत: इन प्रश्नों पर विचार करते समय हमें चयन की कुछ सामान्य समस्याओं का भी ध्यान रखना होगा।

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