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Monday, June 14, 2021

Describe the Classification of Knowledge.(ज्ञान के वर्गीकरण का वर्णन करें)



ज्ञान के वर्गीकरण का वर्णन करें। (Describe the Classification of Knowledge.) 


ज्ञान के मुख्यतः दो प्रकार हैं

1. प्रागुनभाविक ज्ञान (A Priori Knowledge)
2. प्रायोगिक ज्ञान (Empirical Knowledge)


प्रागुनभाविक ज्ञान बुद्धि पर आधारित होता है जिसके हम प्रागुनभाविक ज्ञान भी कहते हैं। ऐसा ज्ञान जिसको बुद्धि अनुभव की सहायता के बिना प्राप्त करती है। इस ज्ञान के उदाहरण गणितशास्त्र के क्षेत्र और तर्कशास्त्र के क्षेत्र में मिलते हैं। जैसे दो और दो चार होते हैं, इस बात को प्रमाणित करने के लिए किसी प्रकार के अनुभव की कोई आवश्यकता नहीं है। इसी प्रकार जब हम यह कहते हैं। कि AB से बड़ा है और BC से बड़ा है, इसलिए AC से भी बड़ा है। यह बात इसलिए ठीक है क्योंकि यह तर्क पर आधारित है। तर्कशास्त्र में निगमन के आधार पर जो तर्क दिया जाता है वह तार्किक नियमों पर आधारित होने के कारण वैध (Valid) है। बहुत-से कथन, कहावतें और तथाकथित सत्य जिनका हम दैनिक जीवन में प्रयोग करते हैं वे सभी ए प्रयोरी (प्रागुनभाविक) ज्ञान के अन्तर्गत आते हैं।

2. प्रायोगिक ज्ञान (Empirical Knowlege) 

अनुभव ज्ञान प्रयोग पर आधारित ज्ञान होता है। यह ज्ञान प्रागुनभाविक (ए प्रयोरी) ज्ञान से भिन्न ज्ञान है। यह ज्ञान इन्द्रियगत और बाहरी जगत् के अवलोकन, निरीक्षण और मनुष्य के स्वयं के अनुभव, अवलोकन और निरीक्षण से प्राप्त होता है। इसलिए कहा जाता है कि इन्द्रियाँ ज्ञान की द्वार हैं। हमें अपने वातावरण में चहुँ ओर का ज्ञान जो निरीक्षण एवं इन्द्रियों से प्राप्त होता है वो प्रायोग सिद्ध ज्ञान कहलाता

भारतीय दार्शनिकों की दृष्टि से ज्ञान दो प्रकार का है

1. परा विद्या (Para Vidya)

2. अपरा विद्या (Apara Vidya)


1. परा विद्या (Para Vidya) 

इस प्रकार का ज्ञान उस भौतिक संसार और बाहरी प्रकृति के संचार से सम्बन्धित है। इस भौतिक ज्ञान की प्राप्ति हेतु हमें अपनी पाँच इन्द्रियों और तर्क का सहारा लेना पड़ता है। इस प्रकार के ज्ञान को लौकिक ज्ञान भी कह सकते हैं।

2. अपरा विद्या (Apara Vidya) 

अपरा विद्या का सम्बन्ध दूसरे लोक या जगत् के साथ है। इस लोक से परे का ज्ञान, अर्थात् प्रकृति में आध्यात्मिकता की झलक पाना। यह ज्ञान मानव प्रकृति का सर्वोच्च ज्ञान है। यह ज्ञान व्यक्ति के स्वयं को जानने, आत्मा और परमात्मा से सम्बन्धित ज्ञान है। यह ज्ञान आत्मा और परमात्मा के पारस्परिक सम्बन्धों की व्याख्या करता है।

उदाहरण के रूप में कबीर द्वारा रचित इस निम्नलिखित दोहे में आत्मा और परमात्मा के सम्बन्ध की व्याख्या है

"जल में कुम्भ, कुम्भ में जल, बाहर भीतर पानी ।
 फूटा कुम्भ, जल ही जल समाना, यह तथ्य कथित ज्ञानी।" 


ज्ञान के विशेष प्रकार
(Specific Types of Knowledge)

ज्ञान के विशेष प्रकारों का आधार मुख्य रूप से ज्ञान के स्रोत ही हैं। ज्ञान के सभी विशेष प्रकार प्रत्यक्ष या अप्रत्यख रूप से ज्ञान के स्रोत से ही सम्बन्धित हैं। ज्ञान के विशेष प्रकार निम्न हैं-

1. आप्त वचन, अधिकारात्मक (Testimony Authoritative) 

अगर हम विचार करें तो हमें इस बात का आभास होगा कि जो हमारा ज्ञान है उसमें से अधिकांश ज्ञान न तो स्वयं अपनी इन्द्रियों को देखकर प्राप्त किया है और न ही स्वयं तर्क करके। जैसे-शाहजहाँ ने ताजमहल बनवाया था, पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है। यह ज्ञान आपने दूसरे के वचनों पर विश्वास करके प्राप्त किया। अधिकतर ज्ञान दूसरों को वचनों पर विश्वास करे ही प्राप्त किया जाता है। दूसरे व्यक्ति विषय विशेष के अधिकारी या विशेषज्ञ होते हैं। अनुसन्धान पर आधारित ज्ञान भी इस प्रकार का ही होता है।

2. प्रयोग सिद्ध या सूझ-बझ पर आधारित ज्ञान (Empirical Knowledge)-

 जो ज्ञान हमारे अनुभवों निरीक्षणों और अवलोकन पर आधारित होता है उसे प्रयोग सिद्ध ज्ञान कहते हैं। यह ज्ञान इन्दियानुभव से सम्बन्धित है। यह ज्ञान मनुष्य का सबसे प्रारम्भिक और महत्वपूर्ण ज्ञान है। यह ज्ञान पाँच इन्द्रियों के माध्यम से प्राप्त किया जाता है। जैसे कहा भी गया है, इन्द्रियाँ ज्ञान के द्वार हैं (Senses are gateway of knowledge ) । प्रयोग सिद्ध ज्ञान प्रत्यक्ष होता है।

3. तर्कसंगत ज्ञान (Knowledge based on Reasoning) 

मनुष्य को प्रत्यक्ष के द्वारा वर्तमान का ही ज्ञान हाता है लेकिन तर्क तथा अनुभव द्वारा हम भूत, वर्तमान और भविष्य से सम्बन्धित घटनाओं के बारे में भी ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार ज्ञान के क्षेत्र में इन्द्रियानुभव के बाद तर्क को महत्व दिया जाता है। वास्तव में व्यवहार और विज्ञान दोनों क्षेत्रों का ज्ञान प्राप्त करने के लिए इन्दियानुभव और तर्क दोनों का सहारा लेना पड़ता है। तर्क है के अन्तर्गत दो प्रकार का तर्क आता है। पहला है निगमनात्मक तर्क, दूसरा आगमनात्मक तर्क।

4. वैज्ञानिक ज्ञान (Scientific Knowledge) 

यह ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र से सम्बन्धित है और जिन मनुष्यों की विज्ञान में रुचि होती है और जीवन में वैज्ञानिक दृष्टिकोण होता है तो वे इस ज्ञान को प्रयोगाशालाओं में प्रयोग करके और निरीक्षणों द्वारा प्राप्त करते हैं। इस ज्ञान की पुष्टि अन्य नमुष्यों के द्वारा किये गए परीक्षणों से की जा सकती है। इस ज्ञान को प्रकट करने हेतु इन्द्रियानुभव ज्ञान और तर्क संगत ज्ञान का सहारा लिया जाता है।

5. क्रियात्मक ज्ञान (Pragmatic Knowledge)

यह ज्ञान डॉ. डीवी के प्रयोजनवाद पर आधारित है। प्रयोजनवाद को अर्थ-क्रियावाद भी कहते हैं। अर्थ क्रियावाद की यह मूलभूत मान्यता है कि विचार अथवा विश्वास जीवन के उपकरण है, ये व्यक्ति की इच्छाओं की सन्तुष्टि के साधन हैं। ये कार्य की योजनाओं में सहायक हैं। इसलिए किसी विचार अथवा विश्वास के सफल होने का अर्थ उसकी व्यवहारिक सफलता है। एक विचार पर अमल करने से सफलता मिलती है तो वह सही रूप में ज्ञान हैं, यदि इसके विपरीत होता है तो इन नहीं हैं। जो ज्ञान लाभदायक और उपयोगी होता है तो वह क्रियात्मक ज्ञान के अन्तर्गत आता है। यह ज्ञान व्यक्ति के अनुभव प्रयोग, निरीक्षण के आधार पर होता है और यह व्यक्तिगत (Subjective) होता है। इसके साथ-ही-साथ यह ज्ञान व्यक्ति के सामंजस्य में सहायक होता है।

6. सहजबोध अथवा अन्तःप्रज्ञा (Intuitive Knowledge)

सहजबोध का सम्बन्ध न तो व्यक्ति के अनुभव और न ही उसकी बुद्धि के घेरे में आता है। इस ज्ञान का सम्बन्ध तर्क बुद्धि से भी नहीं है। यह ज्ञान सहजबोध व अन्तःप्रज्ञा (Intuition) से प्रारम्भ होता है। सहज बोध का स्वरूप सम्पूर्ण एवं समग्रता की अनुभूति में है और मानव ज्ञान इस अनुभूति से ही प्रारम्भ होता है। बुद्धि की विश्लेषण, सामान्यीकरण और विभेदीकरण आदि प्रक्रियायें बाद में आती हैं। भविष्य में किसी प्रकार की घटना के घटने के बारे में पहले से ही जान लेना सहजबोध अथवा अन्तः प्रज्ञा कहलाता है। यह ज्ञान स्वाभाविक और प्राकृतिक होता है और इसकी पुष्टि विज्ञान द्वारा सम्भव नहीं है।

7. श्रुतिज्ञान (Revealed Knowledge)

 यह ज्ञान अधिकांश रूप में धार्मिक ज्ञान होता है। धर्म ग्रन्थों की प्रमाणिकता को सिद्ध करने के लिए प्रायः यह कहा जाता है कि उनको वचनों तथा शब्दों की श्रुति पैगम्बरों और शब्दों को सचमुच सुना है, लेकिन बाहरी कानों से नहीं अपितु अन्तरात्मा में यह सब कुछ हुआ है। मुसलमान कुरान शरीफ को, इसाई बाइबिल को, सिक्ख गुरु ग्रन्थ साहिब को और हिन्दू वेदों को श्रुति कहते हैं। श्रुति को धर्म क्षेत्र में स्वतः भाषा माना जाता है। इस प्रकार का ज्ञान धार्मिक ग्रन्थों से प्राप्त होता है। यह ज्ञान नया न होकर पुराना, परम्परागत और सर्वमान्य होता है। धार्मिक विचार रखने वाले मनुष्य में इस ज्ञान के प्रति किसी प्रकार का भी संशय नहीं होता। इस ज्ञान में किसी प्रकार का परिवर्तन समाज के लिए असहनीय होता है।

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