विभिन्न शिक्षण पद्धतियों में भाषा के महत्व का उल्लेख करें।
(Mention the importance of language in different Educational in systems.)
पुरानी नयी सभी शिक्षण पद्धतियों में भाषा के महत्व को स्वीकार किया गया है। मान्टेसरी किण्डर गार्डन, डाल्टन आदि से लेकर खेल पद्धति तक भाषा की उपेक्षा नहीं की गई है।
**माण्टेसरी पद्धति और भाषा की शिक्षा :-
मान्टेसरी पद्धति ज्ञानेन्द्रियों की शिक्षा को उत्तम मानती है। ज्ञानेन्द्रियों की शिक्षा के उपरान्त बालकों को लिखना पढ़ना व गणित का ज्ञान कराना ज्ञानेन्द्रियों की शिक्षा के उपरान्त बालकों को लिखना पढ़ना व गणित का ज्ञान कराना चाहती है। सर्वप्रथम वे पढ़ना-लिखना सिखाना चाहती हैं वे रटने पर बल न देकर वर्णमाला के रूप व ध्वनि के साथ समन्वय कराना चाहती है। खुरदरे कागज पर अंकित अक्षरों पर उँगलियाँ फिरा-फिरा कर अक्षर ज्ञान कराना चाहती है। इसके उपरान्त पेन्सिल कलम हाथ में देना चाहती है। जिससे बालक में अक्षर व ध्वनि का ज्ञान समुचित प्रकार से हो जायेगा फिर बालक पढ़ना सीख लेगा। शिक्षिका द्वारा वणों की ध्वनियों का विश्लेषण से बालकों को वर्णों का वैज्ञानिक और सूक्ष्म ज्ञान प्राप्त होता है जिससे वे वर्तनी की अशुद्धियों को दूर करने का अधिकार प्राप्त कर सकेंगे और शुद्ध रूप में लिख सकेंगे।
मान्टेसरी शिक्षण पद्धति हिन्दी भाषा शिक्षण के लिए लाभकारी है। इस पद्धति के माध्यम से छोटे बालकों को भाषा का ज्ञान मनोवैज्ञानिक तरीके से कराया जा सकता है। ज्ञानेन्द्रियों के पूर्ण रूपेण विकास के कारण भाषा सम्बन्धी उच्चारण, वाचन और लेखन में अशुद्धियाँ नहीं होती है। हाथों की क्रियाशीलता के कारण ध्यान अक्षरों पर रहता है। इस पद्धति को यह भूल है कि लिखने के पश्चात् पढ़ना सिखलाना उत्तम है। शेष बातें हिन्दी शिक्षण के लिए उपयोगी हैं।
**किण्डर गार्टन एवं भाषा शिक्षण:-
वर्णमाला के परिचय के लिए फ्राबेल ने बालकों के सम्मुख वर्णों से सम्बन्धित चित्रों की रचना की। बालक चित्र से साहचर्य स्थापित कर वर्णों का ज्ञान उचित प्रकार से प्राप्त करते हैं। यह पद्धति हिन्दी वर्णमाला के शिक्षण के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुई।
1. अक्षर ज्ञान के लिए कविताएँ याद करायी जाती है। वर्णमाला के प्रत्येक अक्षरों से शुरू होने वाले गीत, छड़ी एवं डोरे से बालकों को वर्णमाला के वर्णों का ज्ञान करते हैं।
2. वर्णों के परिचय के पश्चात् कहानी एवं गीतों की रचना भाषा शिक्षण के लिए लाभकारी सिद्ध होती है। कहानी के माध्यम से बालकों में कल्पना शक्ति एवं मूल्यों का विकास सम्भव है। गीतों एवं कहानियों के द्वारा बालकों के उच्चारण में सुधार किया जा सकता है। इसके साथ ही साथ बालकों के शब्द भण्डार में वृद्धि होती है विचार उद्गलित होते हैं तथा भाषा और विचारों की क्रमशः बाँधने की क्षमता का विकास होता है।
3. चित्रों को सहायता से कहानी बनाकर वाचन की क्रिया चित्र से प्रारंभ होती है।सर्वप्रथम शिक्षक के कहने के बाद छात्रों का वाचन शुरू होता है।
4. लिखने के अभ्यास हेतु छोटी-छोटी लकड़ियों के माध्यम से सरल रेखाओं और केन्द्रों को बनाकर किया जाता है।
5. तत्पश्चात् कलम चलाना सिखाया जाता है। समूह गान से सस्वर वाचन का अभ्यास होता है छात्रों को अभिनय गीत सिखाये जाते हैं। हिन्दी शिक्षण के लिए बालोद्यान पद्धति उपयोगी है। समूहगान, कहानियाँ आदि तरीके भाषा शिक्षण को सरल एवं मनोरंजन रूप प्रदान करती है और खेल विधि तो भाषा शिक्षण में सर्वमान्य हो चुकी है। तीन से सात वर्ष तक के बालकों के लिए एवं अक्षर ज्ञान के लिए यह विधि उत्तम एवं उपयोगी है।
##अन्य भाषा शिक्षण पद्धत्ति जानने के लिए निचे के लिंक पर क्लिक करें।
*भाषा शिक्षण-डाल्टन पद्धति
*योजना पद्धति और भाषा शिक्षण
*ह्यूरिस्टिक पद्धति एवं भाषा शिक्षण
* विनेटका पद्धति एवं भाषा शिक्षण
*काम्प्लेक्स पद्धति और भाषा शिक्षण
*बुनियादी शिक्षा पद्धति तथा भाषा शिक्षण
*खेल पद्धति और भाषा शिक्षण
मान्टेसरी शिक्षण पद्धति हिन्दी भाषा शिक्षण के लिए लाभकारी है। इस पद्धति के माध्यम से छोटे बालकों को भाषा का ज्ञान मनोवैज्ञानिक तरीके से कराया जा सकता है। ज्ञानेन्द्रियों के पूर्ण रूपेण विकास के कारण भाषा सम्बन्धी उच्चारण, वाचन और लेखन में अशुद्धियाँ नहीं होती है। हाथों की क्रियाशीलता के कारण ध्यान अक्षरों पर रहता है। इस पद्धति को यह भूल है कि लिखने के पश्चात् पढ़ना सिखलाना उत्तम है। शेष बातें हिन्दी शिक्षण के लिए उपयोगी हैं।
**किण्डर गार्टन एवं भाषा शिक्षण:-
वर्णमाला के परिचय के लिए फ्राबेल ने बालकों के सम्मुख वर्णों से सम्बन्धित चित्रों की रचना की। बालक चित्र से साहचर्य स्थापित कर वर्णों का ज्ञान उचित प्रकार से प्राप्त करते हैं। यह पद्धति हिन्दी वर्णमाला के शिक्षण के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुई।
1. अक्षर ज्ञान के लिए कविताएँ याद करायी जाती है। वर्णमाला के प्रत्येक अक्षरों से शुरू होने वाले गीत, छड़ी एवं डोरे से बालकों को वर्णमाला के वर्णों का ज्ञान करते हैं।
2. वर्णों के परिचय के पश्चात् कहानी एवं गीतों की रचना भाषा शिक्षण के लिए लाभकारी सिद्ध होती है। कहानी के माध्यम से बालकों में कल्पना शक्ति एवं मूल्यों का विकास सम्भव है। गीतों एवं कहानियों के द्वारा बालकों के उच्चारण में सुधार किया जा सकता है। इसके साथ ही साथ बालकों के शब्द भण्डार में वृद्धि होती है विचार उद्गलित होते हैं तथा भाषा और विचारों की क्रमशः बाँधने की क्षमता का विकास होता है।
3. चित्रों को सहायता से कहानी बनाकर वाचन की क्रिया चित्र से प्रारंभ होती है।सर्वप्रथम शिक्षक के कहने के बाद छात्रों का वाचन शुरू होता है।
4. लिखने के अभ्यास हेतु छोटी-छोटी लकड़ियों के माध्यम से सरल रेखाओं और केन्द्रों को बनाकर किया जाता है।
5. तत्पश्चात् कलम चलाना सिखाया जाता है। समूह गान से सस्वर वाचन का अभ्यास होता है छात्रों को अभिनय गीत सिखाये जाते हैं। हिन्दी शिक्षण के लिए बालोद्यान पद्धति उपयोगी है। समूहगान, कहानियाँ आदि तरीके भाषा शिक्षण को सरल एवं मनोरंजन रूप प्रदान करती है और खेल विधि तो भाषा शिक्षण में सर्वमान्य हो चुकी है। तीन से सात वर्ष तक के बालकों के लिए एवं अक्षर ज्ञान के लिए यह विधि उत्तम एवं उपयोगी है।
##अन्य भाषा शिक्षण पद्धत्ति जानने के लिए निचे के लिंक पर क्लिक करें।
*भाषा शिक्षण-डाल्टन पद्धति
*योजना पद्धति और भाषा शिक्षण
*ह्यूरिस्टिक पद्धति एवं भाषा शिक्षण
* विनेटका पद्धति एवं भाषा शिक्षण
*काम्प्लेक्स पद्धति और भाषा शिक्षण
*बुनियादी शिक्षा पद्धति तथा भाषा शिक्षण
*खेल पद्धति और भाषा शिक्षण
No comments:
Post a Comment
"Attention viewers: Kindly note that any comments made here are subject to community guidelines and moderation. Let's keep the conversation respectful and constructive. Do not add any link in comments. We are also Reviewing all comments for Publishing. Thank you for your cooperation!"