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Friday, May 22, 2020

Quality in Education शिक्षा में गुणवत्ता

शिक्षा में गुणवत्ता :-






प्राचीन काल में शिक्षा विधार्थी को ॠषियों मनीषियों द्वारा गुरुकुलों या आश्रमों में प्रदान किन जाती थी, जहाँ विद्यार्थी पूर्णकालिक रूप में रहकर उपरोक्त गुणों का संवर्धन करता है. लेकिन वर्तमान समय में शिक्षा तथा शिक्षक के स्वरूप मानदंडों एवं विचारो में परिवर्तन हुआ हैं. प्राचीन परंपरागत आश्रमों एवं गुरुकुलों के स्वरूपों में भी परिवर्तन हुआ हैं, और आधुनिक व्यवायिक शिक्षण संस्थानों से भिन्न या विशिष्ट बनाये रखना चाहता था। जिसके लिए ये अपनी विशिष्टता के मानकों का निर्धारण करते हैं और अपने को अन्य से श्रेठतम साबित करना चाहते हैं।  यह विशिष्टता ही उनकी गुणवत्ता की सूचक होती हैं।  
गुणवत्ता किसी उतपाद अथवा से  समग्र लक्षण एवं विशेषता होती है जो उसके बारे में वर्णित अथवा निहित गुणों को पूरा करने की क्षमता रखती हैं।  ब्रिटिश मानक संस्थान 1991 पूर्व अध्ययनों में शिक्षा में गुणवत्ता प्रवंधन के सन्दर्भ में अध्ययन किया गया है। ऐसे वातावरण का निर्माण जो हर विद्यार्थी के शारीरिक निर्माण की पुष्टि करें तथा पाठ्यचर्चा का सामंजस्य हो।  
यूनिसेफ ने गुणवत्ता शिक्षा के बारे में लिखा हैं - बाल-केंद्रित  तरीके से होने वाला शिक्षण ही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा हैं, जिसमें शिक्षक एक सुगमकर्ता की भूमिका में होगा।  कक्षा में भागीदारी और सीखने के लिए उसकी पूरी तैयारी होगी। इसके साथ ही बच्चे का परिवार और समुदाय शिक्षा जारी रखने में सहयोग करेंगे।  
आसान शब्दों में हम कह सकते हैं की - गुणवत्ता शिक्षा का मतलब ऐसी शिक्षा हैं जो हर बच्चों के काम आये।  इसके साथ ही हर बच्चों की क्षमताओं के सम्पूर्ण विकास में समान रूप से उपयोगी हों। 
विद्यालयी शिक्षा की गुणवत्ता को उत्कृष्ट बनाने हेतु आयोग ने निम्लिखित घटकों (Factor) की रूप रेखा तैयार की है।  
(क.) विद्यालय की गुणवत्ता निरिक्षण के लिए राष्ट्रिय निकाय की स्थापना। 
(ख.) निरिक्षण की उपयोगिता सुनिश्चित करने हेतु प्रभावी निरिक्षण प्रणाली विकसित  करना। 
(ग.) अध्यापकों की जवावदेही बढ़ाना।  
(घ.) अध्यापकों की पूर्व सेवा एवं सेवाकालीन प्रशिक्षण में सुधार  व इसे आधुनिक बनाते हुए समय- समय पर आवश्यकतानुसार परिवर्तित एवं परिवर्धित करना। 
(ड़.) पाठ्यक्रम सुशार को प्राथिमिकता  प्रदान करना एवं शिक्षा को बच्चों के लिए उपयुक्त एवं औचित्यपूर्ण बनाना।  
(च.) बच्चों की भाषा एवं विषय बोधगमयता, अंकीय एवं परिमाणात्मक कौशल एवं ज्ञान सृजनात्मकता एवं उपयोग क्षमता के महत्व के दृष्टिगत परीक्षा प्रणाली में सुधार लाया जाना।  

इस प्रकार गुणवत्ता प्रधान शिक्षा का व्यवहारिक अर्थ है, बच्चों द्वारा बौद्धिक/संज्ञानात्मक , भावात्मक एवं मनोदैहिक क्षेत्र की विभिन्न दक्षताओं को अर्जित करना। मुख्य रूप से बच्चों के अधिगम संप्राप्ति के रूप में निम्नलिखित दक्षताएं हो सकती हैं। 
1. बच्चें या विद्यार्थि विश्लेषणात्मक शैली में पढ़ाना व लिखना सीख जाते हैं।
2. उनमें तार्किक दक्षताएँ विकसित हो जाती हैं। 
3. उनमें पारस्परिक संवाद व विचारों के आदान-प्रदान की उत्कृष्ट क्षमता विकसित हो जाती हैं। 
4. वे जीवन की यथार्थ परिस्थितियों में ज्ञान का उपयोग करना सीख जाते हैं। 

गुणवत्ता के सूचक (Indicators) अगले पोस्ट में पढ़ने के लिए क्लिक करें 




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