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Language

Monday, June 14, 2021

भाषा के अनुशासन या पाठ्यक्रम का विवेचन करें। Discuss Discipline of Language or curriculum

भाषा के अनुशासन या पाठ्यक्रम का विवेचन करें। (Discuss Discipline of Language or curriculum.)
'पाठ्यक्रम' शिक्षाशास्त्र का बड़ा रोचक विषय हैं। कुछ समय पूर्व तक इस शब्द का बड़ा संकुचित अर्थ लगाया जाता था, किन्तु अब हम पाठ्यक्रम में विद्यालय के समस्त अनुभवों को सम्मिलित कर लेते हैं। छात्र कक्षा में या कक्षा से बाहर विद्यालय की सीमा के अन्तर्गत किसी स्थल पर जो कुछ अनुभव करता है, वह सब पाठ्यक्रम है। पाठ्यक्रम का एक आवश्यक पक्ष विभिन्न विषयों का अध्ययन अध्यापन भी है। ज्ञान-विज्ञान के अनेकानेक विषय हैं और किसी विषय को छोटा या बड़ा कहना युक्तिसंगत नहीं है। सभी विषयों को अपना महत्व है। हाँ, यह बात अवश्य है कि कुछ विषयों को हम पहले और में पढ़ाना चाहते हैं, और कुछ विषयों को देश-काल की आवश्यकता के अनुसार को बाद अनिवार्य रूप से और कुछ को वैकल्पिक रूप से पढ़ाना चाहते हैं। ज्ञान-विज्ञान के इन अनेकानेक विषयों को हम विभिन्न भाषाओं के माध्यम से पढ़ते-पढ़ाते हैं।

1. मातृभाषा
2. राष्ट्रभाषा
3. प्राचीन सांस्कृतिक भाषा
4. विदेशी भाषा

1. मातृभाषा – 

एक समय था, जब मातृभाषा की भी भारतीय विद्यालयों में कोई पृछ नहीं थी, किन्तु अब साधारण बुद्धि रखने वाले व्यक्ति भी इस तथ्य को जाना गया है कि मातृभाषा का शासन शिक्षा योजना में सर्वोच्च ही हो सकता है, उससे जरा भी कम नहीं। जो व्यक्ति अन्य भाषाओं का पण्डित तो हो, किन्तु निज भाषा को जानता ही न हो, उससे स्वदेश की उन्नति की आशा करना व्यर्थ है।

2. राष्ट्रभाषा-

मातृभाषा के अतिरिक्त राष्ट्रभाषा का भी विशेष महत्व है। संसार के जो देश एक भाषा-भाषी हैं, वहाँ जनता की मातृभाषा एक ही होती है। भारत बहुभाषा-भाषी देश है। अतः यहाँ यह आवश्यक नहीं कि मातृभाषा ही राष्ट्रभाषा हो । भारतीय संविधान ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित किया है। हिन्दी भाषी प्रदेशों में हिन्दी मातृभाषा एवं राष्ट्रभाषा दोनों हैं, किन्तु अहिन्दी प्रदेशों में मातृभाषाएँ एवं राष्ट्रभाषा विभिन्न है। अतः समूचे देश की दृष्टि से भारत में दूसरी भाषा राष्ट्रभाषा 'हिन्दी' है|

3. प्राचीन सांस्कृतिक भाषा- 

तीसरी भाषा प्राचीन सांस्कृतिक भाषा है, जिसके पक्ष का समर्थन अनेक व्यक्ति करते हैं। ग्रीक, लैटिन, संस्कृत आदि ऐसी भाषाएँ मानी जाती हैं. किन्तु संस्कृत की स्थिति कुछ भिन्न है। संस्कृत प्राचीन भाषा होते हुए भी मृत नहीं है। इसकी परम्परा अभी भी जीवित है। ग्रीक तथा लैटिन भाषाएँ यूरोप के सामान्य जीवन से उठ चुकी हैं, किन्तु संस्कृत अभी भी भारतीय हिन्दुओं के जीवन में प्रातः से सायं तक के कार्यों में जीवित है। भारत की प्राचीन सांस्कृतिक भाषाएँ मुख्य रूप से संस्कृत, पालि, प्राकृत तथा अपभ्रंश है, किन्तु इनमें भी संस्कृत का स्थान अधिक महत्वपूर्ण है। अतः प्राचीन सांस्कृतिक भाषाओं में संस्कृत के अध्ययन अध्यापन की ओर ध्यान देना प्रत्येक जागरूक नागरिक का कर्तव्य है।

4. विदेशी भाषा-

चौथी भाषा एक विदेशी भाषा होनी चाहिए। विदेशी भाषाओं में कुछ का महत्त्व कुछ कारणों से अधिक है। अंग्रेजी, फ्रेंच, स्पेनिश, रूसी और चीनी भाषाएँ बड़ी ही समृद्ध भाषाएँ हैं। इनमें से अंग्रेजी को वरीयता मिलनी चाहिए, किन्तु अन्य भाषाओं की उपेक्षा करने की आवश्यकता नहीं है। अंग्रेजी को वरीयता ऐतिहासिक कारणों से मिलनी चाहिए। कुछ लोग अंग्रेजी को अनिवार्य बनाने के पक्ष में हैं। कुछ इसे वैकल्पिक रूप से पढ़ाने को कहते हैं, तो कुछ इसका अध्ययन बिल्कुल समाप्त कर देने को कहते हैं। अंग्रेजी का अध्ययन न तो बिल्कुल समाप्त कर देने की आवश्यकता है और न इसे अनिवार्य बनाने की ही जरूरत है। अंग्रेजी का अध्ययन वैकल्पिक ही होना चाहिए। जो छात्र अंग्रेजी पढ़ने के इच्छुक हों, उन्हें इसे पढ़ने की छूट होनी चाहिए और उन्हें हर प्रकार की सुविधा देनी चाहिए, किन्तु जिन छात्रों की रुचि अंग्रेजी पढ़ने में नहीं हैं, उन्हें पढ़ाने से कोई लाभ नहीं । इससे न तो अंग्रेजी का ही भला होगा और न उन छात्रों का ही जो बिना रुचि के इसे पढ़ेंगे। उत्तर भारत की अपेक्षा दक्षिण में अंग्रेजी का प्रचलन अधिक है।

कितनी भाषाएँ पढ़ाई जाएँ।

पाठ्यक्रम में कितनी भाषाओं को स्थान मिलना चाहिए? वस्तुतः प्रत्येक विद्यालय में जितनी अधिक भाषाओं के अध्ययन अध्यापन की सुविधा मिल सके, उतना ही अच्छा है, - किन्तु सभी भाषाओं का अध्ययन अनिवार्य करने को कोई प्रश्न नहीं। अनिवार्य अध्ययन कुछ ही भाषाओं का होना चाहिए, वैकल्पिक अध्ययन कुछ अधिक भाषाओं का हो सकता है। कुछ लोग बालक को केवल एक ही भाषा सिखाने का समर्थन करते हैं। उनके अनुसार बालक को अन्य भाषा सीखने में व्यर्थ ही समय नष्ट करना पड़ता है और वह अन्य भज्ञपा सीखने में प्रायः असमर्थ ही रहता है। इस सम्बन्ध में कनाडा के प्रसिद्ध मस्तिष्क-विशेषज्ञ डॉ. पेनफील्ड का कथन ध्यान देने योग्य है। उनके अनुसार, "दस वर्ष से नीचे के बालक का मस्तिष्क किशोर के मस्तिष्क की भाँति नहीं होता। प्रारम्भिक अवस्था में बालक अपने मस्तिष्क में भाषा की इकाइयों को जमा करता है, जिन्हें बाद में वह अपने शब्द भण्डार को बढ़ाने में पर्युक्त करेगा।" डॉ. पेनफील्ड के अनुसार, “बालक अनेक भाषाएँ सीखने की सामर्थ्य रखता है।" डॉ. पेनफील्ड की बात को पूर्णतः न भी माना जाये, तो भी यह निश्चित ही है कि बालक को दो-तीन भाषाओं को सीखने में विशेष कठिनाई नहीं होनी चाहिए।

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