मानव का मन
जिन्दगी में कोई किसी का नहीं होता यह एक कड़वा सच है। लोग सिर्फ मोह में रहते हैं कि ये मेरा भाई और माँ बाप और फलाना फलाना। इस भ्रम का जो व्यक्ति इस भ्रांति का समायोजन करना जान जाता हैं वो कभी नहीं ऐसा सोंचता की मेरा कोई नहीं हैं। लोग थोड़ी सी कठिनाई महसूस होने पर बिचलित हो कर ऐसी सोंच अपने मन मे उजागर होने की अनुमति दे देते हैं। मन एक प्रकार की अनभिज्ञ संरचना हैं जो हरदम कुछ न कुछ अजीब संक्रिया करता रहता हैं लोग अपने इसी मन की संक्रिया को सुलझाने अथवा समझने में अपने मन की भ्रांति में उलझ जाता हैं, जो बाद में उस भ्रांति को लेकर पछतावा करता हैं। बस हमे अपने भ्रम से निकलने और वर्तमान में जीने की इक्षा को उजागर करना चाहिए।
मानव जीवन की एक सत्यता यह भी है कि वो अपने जीवन की किस तरह उपयोग करता हैं और किस उद्देश्य के लिए करता हैं, मुझे ये नही लगता कि कोई मानव अपने से कहे कि मेरा कोई नहीं, हाँ यह तभी सत्य होगा जब उसका कोई नहीं होता।
किसी ने कहा हैं कि जब कोई कष्ट में होता है तो उसे उस पल का जरूर स्मरण होता हैं कि अमुख होता तो ये दिन नहीं देखने पड़ते, लेकिन यह उसी के मन द्वरा लिया गया निर्णय होता है जो उसे अपनी मन के संजाल में जकड़ लेता हैं।
जो व्यक्ति अपने मन की चंचलता पर काबू पा ले ओ सच मे सराहनीय होता हैं, चाहे उसे दुनिया कुछ भी कहे।
इस उदाहरण के जरिए समझा जा सकता हैं-
एक बार एक व्यक्ति अपनी जीवन की परेशानी से आहत हो कर आत्महत्या करने की सोंचता हैं और वो एक रेलवे ट्रैक की ओर जाने लगता हैं तभी उसे एक विकलांग जिसे दोनो हाथ नहीं था उसे उस व्यक्ति पर नजर पड़ता हैं। वो आदमी बहुत तेज में जा रहा होता हैं। तभी वो परेशान व्यक्ति उनसे पूछता हैं भी तुम इतने तेजी में कहाँ जा रहे तो वो विकलांग हंसते हुए जवाब देता हैं की भाई सुबह से कुछ खाना नही खाया तो भीख मांगने जा रहा हूँ। तो ओ व्यक्ति फिर पूछता हैं भूखा हो तब भी इतने खुस हो ? तो वो भिखारी कहता हैं भाई दुःखी रहने से खाना मिल जाएगा क्या। वो आदमी तभी सोंचता है कि साला हमे तो सब कुछ है बस थोड़ी सी परेसानी है तो मैं क्यों के सोचा कि अब मेरा कोई नहीं और मैं खुद को मिटा दूं। और वो वहाँ से वापिस आ के उस समस्या का समाधान कर एक सुखद जीवन जीने लगता हैं । जानते हो वो व्यक्ति कौन है विल गेट्स माइक्रोसॉफ्ट CEO।
इसीलिए कोई भी परेसानी को हँसी खुसी में समाधान करने की सोंच रखनी चाहिए। मैं मानता हूं कि मन विचलित होता हैं लेकिन ये हमारा गलती नहीं होता न ही हमारे अपने का वो उस भ्रांति भरी भ्रम जो मन पैदा करता हैं उसका होता है ।
मैं आशा करता हूँ कि मेरे प्यारे दोस्त इस वाचाल बातूनी एवरीथिंग की बात से सहमत होगा।
Have a nice day
कलम:- अभिषेक सिंह
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