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Thursday, December 20, 2018

मेरा बचपन


उन यादों को समेट कर 
जब सोंचता हूँ कि 
क्या था वो बचपन जो 
कहीं किसी गलियों में 
गुजरा करता था।



उन यादों में कुछ थे 
ऐसे पल जिनको सोंच कर 
झनझना सा जाता है मन।
आज वही यादों को 
एक बुनियाद बनाये रखा हूँ।



उन्हीं यादों में थी एक 
छोटी सी, मोटी सी, नन्ही सी
एक परी जो कभी मेरी अंगुली
पकड़ चला करती थी, आज 
वो किसी को राह दिखा रही हैं।



वो क्या थी यादें जब वो
कुछ कहने की कोशिश करती 
और तुतला जाती, फिर 
उसे उसी के तुतलाती आवज
को दुहराने की यादें, आज वो किसी को 
बोलना सीखा रही हैं। 
ये सोंच के झनझना सा जाता है मन ।



उन यादों को क्या करूँ जो 
कभी अपने से बड़ों की 
नकल कर नौटंकी करती,
उन्ही यादों को याद कर झनझना सा जाता है मन।



उन यादों को क्या करूँ 
वो पायल की झनझनाहट
मेरे आँगन में गूंजा करती थी,
जब भी ये पूछता हूँ अपने मन से 
झनझना सा जाता है मन।


उन्ही यादों को सोंच कर 
आज भी झनझना सा जाता है मन।।



Dedicated to all GIRL child, as our sister.
Written by :- Abhishek Singh









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